24 सितंबर 2012

माली : सम्यक निष्ठा

उपवन में नए सुन्दर सलौने पौधे को आया पाकर एक पुराना पौधा उदास हो जाता है। गहरा निश्वास छोड़ते हुए कहता है, “अब हमें कोई नहीं पूछेगा अब हमारे प्रेम के दिन लद गए, हमारी देखभाल भी न होगी।“

युवा पौधे को इस तरह बिसूरते देख पास खड़े अनुभवी प्रौढ़ पेड़ ने कहा, “इस तरह विलाप-प्रलाप उचित नहीं हैं ।और  न ही नए  पौधे से ईर्ष्या करना योग्य  है।“

युवा पौधा आहत स्वर में बोला, “तात! पहले माली हमारा कितना ध्यान रखता था, हमें कितना प्यार करता था। अब वह अपना सारा दुलार उस  नन्हे पौधे को दे रहा है। उसी के साथ मगन रहता है, हमारी तरफ तो आँख उठाकर भी नहीं देखता।“

प्रौढ़ पेड़ ने समझाते हुए कहा, “वत्स! तुम गलत सोच रहे हो, बागवान सभी को समान स्नेह करता है। वह अनुभवी है, उसे पता है कब किसे अधिक ध्यान की आवश्यकता है। वह अच्छे से जानता है, किसे देखभाल की ज्यादा जरूरत है और किसे कम।“

युवा पौधा अब भी नाराज़ था, बोला- “नहीं तात! माली के मन पक्षपात हो गया है, नन्हे की कोमल कोपलों से उसका मोह अधिक है। वह सब को एक नज़र से नहीं देखता।“

अनुभवी पेड़ ने गम्भीरता से कहा- “नहीं, वत्स! ऐसा कहकर तुम माली के असीम प्यार व अवदान का अपमान कर रहे हो। याद करो! बागवान हमारा कितना ध्यान रखता था। उसके प्यार दुलार के कारण ही आज हम पल्ल्वित, पोषित, बड़े हुए है। हरे भरे और तने खड़े है। उसी के अथक परिश्रम से आज हम इस योग्य है कि हमें विशेष तवज्जो की जरूरत नहीं रही। तुम्हें माली की नजर में वात्सल्य न दिखे, किन्तु हम लोगों को सफलता से सबल बना देने का गौरव, उसकी आँखो में महसुस कर सकते हो। वत्स! अगर माली का संरक्षण व सुरक्षा हमें न मिलती तो शायद बचपन में ही पशु-पक्षी हमारा निवाला बना चुके होते या नटखट बच्चे हमें नोंच डालते। हम तो नादान थे, पोषण पानी की हमें कहां सुध-बुध थी, होती तो भी कहां हमारे पैर थे जो भोजन पानी खोज लाते? हम तो जन्मजात मुक है, क्षुधा-तृषा बोलकर व्यक्त भी नहीं कर सकते। वह माली ही था जिसने बिना कहे ही हमारी भूख-प्यास को पहचाना और तृप्त किया। उस पालक के असीम उपकार को हम कैसे भूल सकते है।“

युवा पौधा भावुक हो उठा- “तात! आपने मेरी आँखे खोल दी। मैं सम्वेदनाशून्य हो गया था। आपने यथार्थ दृष्टि प्रदान की है। ईर्ष्या के अगन में भान भूलकर अपने ही निर्माता-पालक का अपमान कर बैठा। मुझे माफ कर दो।“

युवा पौधा प्रायश्चित का उपाय सोचने लगा, अगले ही मौसम में फल आते ही वह झुक कर माली के चरण छू लेगा। दोनो ने माली को कृतज्ञ नजरों से देखा और श्रद्धा से सिर झुका दिया।

20 टिप्‍पणियां:

  1. प्रौढ़ भए तेहि सुत पर माता ।प्रीति करइ नहिं पाछिलि बाता ।।

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  2. कितनी सच्ची बात कही अनुभवी पौधे ने

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  3. पेड़-पौधों के शांत स्वरों को वही सुन पाता है जो शान्तमना होता है. मुझे यान एक सुकून मिलता है, स्यात सभी को मिलता होगा!

    "सुज्ञ बगीचे बैठते आ-आकर स'बलोग. रुग्ण-न्यारी सोच का है अद्भुत संयोग." :)

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  4. यह सब मानव मन की व्यर्थ चिंताएं हैं। पेड़-पौधे ही ऐसे जीव हैं जो ऐसा कुछ भी नहीं सोचते। मैने कभी किसी वृक्ष को किसी से जलते या किसी का गला दबाते नहीं देखा। यही कारण है कि आप जब भी किसी उपवन में जाते हैं आपका मन शांत और प्रसन्न हो जाता है।

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    1. मानव अभिमान के कारण सीधे अपनी चिँताए व्यक्त नहीं करता, इसीलिए पेड़-पौधो आदि प्रतीकोँ के माध्यम से व्यक्त होता है. किंतु यह चिंताएं व्यर्थ नहीं है. सम्वेदनाएँ समाप्ति की ओर अग्रसर है प्राप्ति का एकाँगी स्वार्थ हावी होता जा रहा है, प्रतिस्पर्धा के कारण सहयोग भाव नष्ट होता जा रहा है, अर्पण के प्रति समर्पण नहीं,योगदान की कद्र नही. उपकार के प्रति कृतज्ञता नहीं. अधिकारोँ पर गदर मची है और कर्तव्य का भान नहीं. इसलिए यह महज व्यर्थ चिंताएं नहीं, आपदाएँ है वृक्ष-कथन आपदाओँ के पूर्व-प्रबँधन उपाय है. :)

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    2. प्रतीकों के माध्यम से उपदेश दिये जाते हैं। इस कथा में जो संदेश देने का प्रयास है वह सुंदर है। वह चिंता व्यर्थ नहीं है। लेकिन जिन्हें प्रतीक बनाया गया है उससे ही मेरा मन नहीं जुड़ पाया। पेड़-पौधों के द्वारा कथा में कही गई बातों को ही मेरा मन स्वीकार नहीं कर पाया। इस अर्थ में मैने लिखा कि पेड़-पौधों ऐसा नहीं सोचते। यह मानव मन की व्यर्थ चिंताएं हैं।

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    3. मानव को वृक्षों द्वारा प्रदत्त शान्त अवदान पर आपकी सम्वेदना समझ सकता हूँ।
      बहुत बहुत आभार स्पष्ट प्रतिक्रिया के लिए!! देवेन्द्र जी।

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  5. बड़ों का अनुभव, छोटों का मार्गदर्शन करता है.. और इस प्रकार अनुभव की श्रृंखला बनती है, पीढ़ी दर पीढ़ी...!!
    /
    लेकिन देवेन्द्र भाई की तरह एक प्रश्न मेरा भी.. हरिऔध जी की कविता के माध्यम से..
    /
    हैं जन्म लेते जगत में एक ही, एक ही पौधा उन्हें है पालता
    रात में उन पर चमकता चादं भी,एक ही सी चाँदनी डालता
    मेंह उन पर है बरसता एक सा,एक सी उनपर हवाएँ हैं बही
    पर सदा ही दीखता है यह हमें,ढंग उनके एक से होते नहीँ.
    छेद कर काँटा किसी की उंगलियाँ,फाड़ देता है किसे का वर वसन
    और प्यारी तितलियोँ के पर क़तर,भौर का है भेद देता श्याम तन.
    फूल ले कर तितलियोँ को गोद में,भौर को अपना अनूठा रस पिला
    निज सुगंधी और निराले रंग से,है सदा देता कली दिल की खिला.
    .....

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    1. निश्चित ही....अनुभव की श्रृंखला बनती है, पीढ़ी दर पीढ़ी...!!
      हरिऔध जी शायद इसी ओर संकेत कर रहे है...

      "कोई लाख करे चतुराई करम का भेद टरे ना रे भाई"

      फिर भी पुरुषार्थ का महत्व बूँद भर भी कम नही होता.

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  6. जीवन का अनुभव ही आने वाली पीढ़ी का मार्ग दर्शन करता है

    RECENT POST समय ठहर उस क्षण,है जाता,

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  7. यह सत्य है कि घर में भी सबसे छोटे सदस्य पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है , क्योंकि उसे सबसे ज्यादा जरुरत होती है .

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  8. जीवन का यथार्थ है। अच्‍छी कथा।

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  9. अनुभव की वाणी से उपजी सच्‍ची बात ...

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  10. Bahut bahut bahut sundar sandesh ... Aabhar sugya bhaiya.

    Is blog par sach hi man paudhon ke upvan jaise hi shaant ho jaata hai. Aabhar aapka.

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  11. अनुभव से ज्ञान, ज्ञान से विनय, विनय से सकारात्मक फल - चरणबद्ध विकास दर्शाती गमकती-महकती कथा| युवा पौधे ने मन की शंका आशंका अपने अनुभवी शुभचिंतक के समक्ष व्यक्त की और उत्तम परिणाम पाया|
    धन्यवाद सुज्ञजी, इस प्रेरक प्रसंग के लिए|

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  12. प्रौढ़ पेड़ ने समझाते हुए कहा, “वत्स! तुम गलत सोच रहे हो, बागवान सभी को समान स्नेह करता है। वह अनुभवी है, उसे पता है कब किसे अधिक ध्यान की आवश्यकता है। वह अच्छे से जानता है, किसे देखभाल की ज्यादा जरूरत है और किसे कम।“
    sarthak sandesh deti kahani ....

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  13. सत्य वचन और सही सन्देश , छोटा पौधा भाग्यशाली था की उसे बड़े का सही मार्ग दर्शन मिला किन्तु तब क्या हो जब अज्ञानता की बात कोई बड़ा ( पढ़े लिखे वेद - शास्त्रों के ज्ञाता ) करे और छोटा ( जो कम से कम वेद शास्त्र का ज्ञाता ज्ञानी ना हो किन्तु सोचने समझने की शक्ति रखता हो ) उसे समझाये किन्तु अपने बड़े होने के अभिमान में बात को समझ ही ना पाये |

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