16 अगस्त 2014

परोपकार

एक बार एक लड़का अपने स्कूल फीस के बंदोवस्त के लिए घरों के द्वार द्वार जाकर कुछ सामान बेचा करता था।

एक दिन उसका कोई सामान नहीं बिका और उसे बड़े जोर से भूख भी लग रही थी। उसने तय किया कि अब वह जिस भी दरवाजे पर जायेगा, उससे खाना मांग लेगा।

पहला दरवाजा खटखटाते ही एक लड़की ने दरवाजा खोला, जिसे देखकर वह घबरा गया और बजाय खाना माँगने के, उसने पानी का एक
गिलास माँगा....

लड़की ने भांप लिया था कि वह क्षुधा संतप्त है, वह एक बड़ा गिलास दूध का ले आई. लड़के ने धीरे-धीरे दूध पी लिया...

"कितने पैसे दूं?" - लड़के ने पूछा।
"पैसे किस बात के?" - लड़की ने प्रतिप्रश्न करते कहा, "माँ ने मुझे सिखाया है कि जब भी किसी पर उपकार करो तो उसके पैसे नहीं लेने चाहिए."

"तो फिर मैं आपको दिल से धन्यवाद देता हूँ."

जैसे ही उस लड़के ने वह घर छोड़ा, उसे न केवल शारीरिक तौर पर शक्ति मिल चुकी थी , बल्कि उसका ईश्वर और मनुष्य पर भरोसा और भी बढ़ गया था।

वर्षों बाद वह लड़की गंभीर रूप से बीमार पड़
गयी। लोकल डॉक्टर ने उसे शहर के बड़े अस्पताल में इलाज के लिए भेज दिया।

विशेषज्ञ डॉक्टर होवार्ड केल्ली को मरीज देखने के लिए बुलाया गया. जैसे ही उसने लड़की के कस्बे का नाम सुना, उसकी आँखों में चमक आ गयी।

वह एकदम सीट से उठा और उस लड़की के कमरे में गया। उसने उस लड़की को देखा, एकदम पहचान लिया और तय कर लिया कि वह उसकी जान बचाने के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा देगा। उसकी मेहनत और लग्न रंग लायी और उस लड़की कि जान बच गयी।

डॉक्टर ने अस्पताल के ऑफिस में जा कर उस
लड़की के इलाज का बिल लिया और उस बिल के कोने में एक नोट लिखा और उसे उस लड़की के पास भिजवा दिया।

लड़की बिल का लिफाफा देखकर परेशान हो उठी उसे मालूम था कि वह बीमारी से तो वह उभर गयी है किन्तु बिल की भारी राशि उसकी जान ही ले लेगी। फिर भी उसने हिम्मत बटोर कर बिल देखा, उसकी नज़र बिल के कोने में हस्तलिखित टिपण्णी पर गयी...

वहाँ लिखा था, "एक गिलास भर दूध द्वारा इस बिल का भुगतान किया जा चुका है." नीचे उस डॉक्टर, होवार्ड केल्ली के हस्ताक्षर थे।

आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता के मारे उस लड़की की आँखों से आंसू टपक पड़े। उसने ऊपर की और दोनों हाथ उठा कर कहा, " हे भगवान..! आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!!"

हमारे दिल की अनुकम्पा, करुणा और वात्सल्य भी एक नेटवर्क की तरह समाज में प्रसरित होता है।

"परोपकार किसी न किसी स्वरूप में आप तक अवश्य लौटता है।"

1 टिप्पणी:

  1. अबसित बसन छुधा असन, थकित नयन किए आस ।
    देन भाव जहँ नहीं तहँ, धन साधन के दास ।१७५८।

    भावार्थ : -- वसन एवं असन की प्रत्यासा में निर्वसन एवं क्षुधा के नैन थक गए हैं । जहां दान भाव न हो वहां जीवन के आधार भूत द्रव्य अर्थात धन फिर साधन का दास हो जाता है ।।

    जवाब देंहटाएं

LinkWithin

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...