एक व्यक्ति नितांत ही अकेला पड गया था। उसके स्वजन, मित्र सभी ने उसका साथ छोड दिया। तकरीबन सभी ने उसके साथ विश्वासघात किया था।अकेलेपन ने उसका जीवन, विषाद से भर दिया था।
विषाद एवम् अकेलेपन के निवारण हेतू वह एक विद्वान महात्मा के पास पहुँचा। उसने अपने नीरस जीवन और अकेलेपन की पीड़ा, महात्मा के समक्ष व्यक्त की। अंत में कातर स्वर में अपने अकेलेपन को दूर करने का उपाय बताने के लिए विनंती की।
महात्मा हंसते हुए बोले, "यह तो बहुत ही सरल है। आप बस मेरे समान मित्रो का सर्कल बनालो, मेरे उन मित्रों के रहते, मुझे कभी अकेलापन महसूस नही हुआ। मेरे मित्र कभी भी धोखा नही देते। मेरे वे पाँचो मित्र हमेशा साथ निभाते है।"
उस व्यक्ति ने कहा, "आप बहुत ही भाग्यशाली है, आपको ऐसे सच्चे स्नेही मित्र मिले! सभी का कहाँ ऐसा सौभाग्य होता है? सभी को, आपके मित्रों समान हितैषी मित्र मिल जाए, यह जरूरी भी तो नही।"
महात्मा ने मंद स्मित करते हुए कहा, अरे भाई! तुझे जानकर आश्चर्य होगा कि मेरे उन मित्रों को कोई भी व्यक्ति सरलता से मित्र बना सकता है। वे सभी के प्रेममय, समर्पितभाव से मित्र बनते है, और मनोयोग से मित्रता निभाते भी है।
व्यक्ति ने बड़ी उम्मीद से प्रश्न किया, "क्या वे मेरे भी मित्र बन जाएंगे? क्या वे मेरा साथ भी निभाएंगे?"
महात्मा ने कहा, "ध्यान से सुनो, जिन पाँच मित्रो की मैं बात कर रहा हूँ उनको मित्र बनाने के लिए तुम्हे भी मनोयोग से मेहनत करनी पड़ेगी, दृढ़निश्चय करना होगा। समर्पित मानस बनाना होगा, मित्रता का संकल्प लेना होगा। जब वे एक बार मित्र बन गए तो फिर सदैव के लिए साथ निभायेंगे। प्रतिक्षण सहायता को तत्पर रहेंगे।"
उस व्यक्ति ने उत्साह से कहा, "तब तो आप जल्दी से मुझे उन पाँच मित्रो के नाम बताईए और वे कहाँ मिलेंगे ठिकाना बताईए। मुझे हरहाल में उनके साथ मित्रता करनी है।"
महात्मा ने प्रसन्नता से उन पाँच मित्रो के नाम बताए-
प्रमाणिकता,
सादगी,
सच्चाई,
स्पष्टवादिता,
वचनबद्धता।
और कहा, "इनका ठिकाना है, अंतर्मन-वन मध्य, इन्द्रियविषय नामक झाड़ झंखाड़ के पीछे, निर्मल हृदयस्थल!!
उनसे शीघ्र साक्षात्कार कर और उन्हें अपना मित्र बना, तेरा अकेलापन काफूर हो जाएगा!!"
उस व्यक्ति को अपनी समस्या का समाधान सहज ही मिल गया
विषाद एवम् अकेलेपन के निवारण हेतू वह एक विद्वान महात्मा के पास पहुँचा। उसने अपने नीरस जीवन और अकेलेपन की पीड़ा, महात्मा के समक्ष व्यक्त की। अंत में कातर स्वर में अपने अकेलेपन को दूर करने का उपाय बताने के लिए विनंती की।
महात्मा हंसते हुए बोले, "यह तो बहुत ही सरल है। आप बस मेरे समान मित्रो का सर्कल बनालो, मेरे उन मित्रों के रहते, मुझे कभी अकेलापन महसूस नही हुआ। मेरे मित्र कभी भी धोखा नही देते। मेरे वे पाँचो मित्र हमेशा साथ निभाते है।"
उस व्यक्ति ने कहा, "आप बहुत ही भाग्यशाली है, आपको ऐसे सच्चे स्नेही मित्र मिले! सभी का कहाँ ऐसा सौभाग्य होता है? सभी को, आपके मित्रों समान हितैषी मित्र मिल जाए, यह जरूरी भी तो नही।"
महात्मा ने मंद स्मित करते हुए कहा, अरे भाई! तुझे जानकर आश्चर्य होगा कि मेरे उन मित्रों को कोई भी व्यक्ति सरलता से मित्र बना सकता है। वे सभी के प्रेममय, समर्पितभाव से मित्र बनते है, और मनोयोग से मित्रता निभाते भी है।
व्यक्ति ने बड़ी उम्मीद से प्रश्न किया, "क्या वे मेरे भी मित्र बन जाएंगे? क्या वे मेरा साथ भी निभाएंगे?"
महात्मा ने कहा, "ध्यान से सुनो, जिन पाँच मित्रो की मैं बात कर रहा हूँ उनको मित्र बनाने के लिए तुम्हे भी मनोयोग से मेहनत करनी पड़ेगी, दृढ़निश्चय करना होगा। समर्पित मानस बनाना होगा, मित्रता का संकल्प लेना होगा। जब वे एक बार मित्र बन गए तो फिर सदैव के लिए साथ निभायेंगे। प्रतिक्षण सहायता को तत्पर रहेंगे।"
उस व्यक्ति ने उत्साह से कहा, "तब तो आप जल्दी से मुझे उन पाँच मित्रो के नाम बताईए और वे कहाँ मिलेंगे ठिकाना बताईए। मुझे हरहाल में उनके साथ मित्रता करनी है।"
महात्मा ने प्रसन्नता से उन पाँच मित्रो के नाम बताए-
प्रमाणिकता,
सादगी,
सच्चाई,
स्पष्टवादिता,
वचनबद्धता।
और कहा, "इनका ठिकाना है, अंतर्मन-वन मध्य, इन्द्रियविषय नामक झाड़ झंखाड़ के पीछे, निर्मल हृदयस्थल!!
उनसे शीघ्र साक्षात्कार कर और उन्हें अपना मित्र बना, तेरा अकेलापन काफूर हो जाएगा!!"
उस व्यक्ति को अपनी समस्या का समाधान सहज ही मिल गया
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