17 अगस्त 2016

सेवा कृतज्ञता और क्षमा

एक राजा था। उसने 10 खूंखार जंगली कुत्ते पाल रखे थे। जिनका इस्तेमाल वह लोगों को उनके द्वारा की गयी गलतियों पर मौत की सजा देने के लिए करता था।
एक बार कुछ ऐसा हुआ कि राजा के एक पुराने मंत्री से कोई गलती हो गयी। क्रोधित होकर राजा ने उसे शिकारी कुत्तों के आगे फिकवाने का आदेश दे डाला।
सजा दिए जाने से पूर्व राजा ने मंत्री से उसकी आखिरी इच्छा पूछी।
“राजन ! मैंने आज्ञाकारी सेवक के रूप में आपकी 10 सालों से सेवा की है…मैं सजा पाने से पहले आपसे 10 दिनों की मोहलत चाहता हूँ।” - मंत्री ने राजा से निवेदन किया। राजा ने उसकी बात मान ली ।
दस दिन बाद राजा के सैनिक मंत्री को पकड़ कर लाते हैं और राजा का इशारा पाते ही उसे खूंखार कुत्तों के सामने फेंक देते हैं। परंतु यह क्या कुत्ते मंत्री पर टूट पड़ने की बजाए, अपनी पूँछ हिला-हिला कर मंत्री के ऊपर कूदने लगते हैं और प्यार से उसके पैर चाटने लगते हैं।
राजा आश्चर्य से यह सब देख रहा था। उसने मन ही मन सोचा कि आखिर इन खूंखार कुत्तों को क्या हो गया है? वे इस तरह व्यवहार क्यों कर रहे हैं?
आखिरकार राजा से रहा नहीं गया। उसने मंत्री से पूछा, "ये क्या हो रहा है, ये कुत्ते तुम्हे काटने की बजाए, तुम्हारे साथ खेल क्यों रहे हैं?"
"राजन ! मैंने आपसे जो १० दिनों की मोहलत ली थी, उस अवधि का एक-एक क्षण मैंने इन बेजुबानो की सेवा में लगा दिया। मैं रोज इन कुत्तों को नहलाता ,खाना खिलाता, सुश्रुषा करता व हर तरह से उनका ध्यान रखता। ये कुत्ते खूंखार और जंगली होकर भी मेरे दस दिन की सेवा नहीं भूला पा रहे हैं। परंतु खेद है कि आप, प्रजा के पालक हो कर भी, मेरी 10 वर्षों की स्वामीभक्ति भूल गए और मेरी एक छोटी सी त्रुटि पर इतनी बड़ी सजा सुन दी!”
राजा को अपनी भूल का एहसास हो चुका था, उसने तत्काल मंत्री को आज़ाद करने का आदेश दिया और आगे से ऐसी गलती ना करने की सौगंध ली।
मित्रों , कई बार इस राजा की तरह हम भी किसी की बरसों की अच्छाई को उसके एक पल की बुराई के आगे भूला देते हैं। यह कहानी हमें समतावान और क्षमाशील होने की सीख देती है। ये हमें सबक देती है कि हम किसी की हज़ार अच्छाइयों को उसकी एक बुराई के सामने छोटा ना होने दें।

सेवा कृतज्ञता और क्षमा

एक राजा था। उसने 10 खूंखार जंगली कुत्ते पाल रखे थे। जिनका इस्तेमाल वह लोगों को उनके द्वारा की गयी गलतियों पर मौत की सजा देने के लिए करता था।
एक बार कुछ ऐसा हुआ कि राजा के एक पुराने मंत्री से कोई गलती हो गयी। क्रोधित होकर राजा ने उसे शिकारी कुत्तों के आगे फिकवाने का आदेश दे डाला।
सजा दिए जाने से पूर्व राजा ने मंत्री से उसकी आखिरी इच्छा पूछी।
“राजन ! मैंने आज्ञाकारी सेवक के रूप में आपकी 10 सालों से सेवा की है…मैं सजा पाने से पहले आपसे 10 दिनों की मोहलत चाहता हूँ।” - मंत्री ने राजा से निवेदन किया। राजा ने उसकी बात मान ली ।
दस दिन बाद राजा के सैनिक मंत्री को पकड़ कर लाते हैं और राजा का इशारा पाते ही उसे खूंखार कुत्तों के सामने फेंक देते हैं। परंतु यह क्या कुत्ते मंत्री पर टूट पड़ने की बजाए, अपनी पूँछ हिला-हिला कर मंत्री के ऊपर कूदने लगते हैं और प्यार से उसके पैर चाटने लगते हैं।
राजा आश्चर्य से यह सब देख रहा था। उसने मन ही मन सोचा कि आखिर इन खूंखार कुत्तों को क्या हो गया है? वे इस तरह व्यवहार क्यों कर रहे हैं?
आखिरकार राजा से रहा नहीं गया। उसने मंत्री से पूछा, "ये क्या हो रहा है, ये कुत्ते तुम्हे काटने की बजाए, तुम्हारे साथ खेल क्यों रहे हैं?"
"राजन ! मैंने आपसे जो १० दिनों की मोहलत ली थी, उस अवधि का एक-एक क्षण मैंने इन बेजुबानो की सेवा में लगा दिया। मैं रोज इन कुत्तों को नहलाता ,खाना खिलाता, सुश्रुषा करता व हर तरह से उनका ध्यान रखता। ये कुत्ते खूंखार और जंगली होकर भी मेरे दस दिन की सेवा नहीं भूला पा रहे हैं। परंतु खेद है कि आप, प्रजा के पालक हो कर भी, मेरी 10 वर्षों की स्वामीभक्ति भूल गए और मेरी एक छोटी सी त्रुटि पर इतनी बड़ी सजा सुन दी!”
राजा को अपनी भूल का एहसास हो चुका था, उसने तत्काल मंत्री को आज़ाद करने का आदेश दिया और आगे से ऐसी गलती ना करने की सौगंध ली।
मित्रों , कई बार इस राजा की तरह हम भी किसी की बरसों की अच्छाई को उसके एक पल की बुराई के आगे भूला देते हैं। यह कहानी हमें समतावान और क्षमाशील होने की सीख देती है। ये हमें सबक देती है कि हम किसी की हज़ार अच्छाइयों को उसकी एक बुराई के सामने छोटा ना होने दें।

11 अगस्त 2016

मानस-बन्धन


एक आदमी कहीं से गुजर रहा था, तभी उसने सड़क के किनारे बंधे हाथियों को देखा, और अचानक रुक गया। उसने देखा कि हाथियों के अगले पैर में एक रस्सी बंधी हुई है, उसे इस बात का बड़ा अचरज हुआ की हाथी जैसे विशालकाय जीव लोहे की जंजीरों की जगह बस एक छोटी सी रस्सी से बंधे हुए हैं!!! ये स्पष्ठ था कि हाथी जब चाहते तब अपने बंधन तोड़ कर कहीं भी जा सकते थे, पर किसी वजह से वो ऐसा नहीं कर रहे थे।

उसने पास खड़े महावत से पूछा कि भला ये हाथी किस प्रकार इतनी शांति से खड़े हैं और भागने का प्रयास नही कर रहे हैं ? तब महावत ने कहा, ” इन हाथियों को छोटे पर से ही इन रस्सियों से बाँधा जाता है, उस समय इनके पास इतनी शक्ति नहीं होती की इस बंधन को तोड़ सकें। बार-बार प्रयास करने पर भी रस्सी ना तोड़ पाने के कारण उन्हें धीरे-धीरे यकीन होता जाता है कि वो इन रस्सियों नहीं तोड़ सकते,और बड़े होने पर भी उनका ये यकीन बना रहता है, इसलिए वो कभी इसे तोड़ने का प्रयास ही नहीं करते।”

आदमी आश्चर्य में पड़ गया कि ये ताकतवर जानवर सिर्फ इसलिए अपना बंधन नहीं तोड़ सकते क्योंकि वो इस बात में यकीन करते हैं!!

इन हाथियों की तरह ही हममें से कितने लोग सिर्फ पहले मिली असफलता के कारण ये मान बैठते हैं कि अब हमसे ये काम हो ही नहीं सकता और अपनी ही बनायीं हुई मानसिक जंजीरों में जकड़े-जकड़े पूरा जीवन गुजार देते हैं।

याद रखिये असफलता जीवन का एक हिस्सा है,और निरंतर प्रयास करने से ही सफलता मिलती है। यदि आप भी ऐसे किसी बंधन में बंधें हैं जो आपको अपने सपने सच करने से रोक रहा है तो उसे तोड़ डालिए….. आप हाथी नहीं इंसान हैं......

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